ब्रह्मांड की उत्पत्ति भाग 5 सनातन धर्म, हिन्दू धर्म /आधुनिक सिद्धांत
आधुनिक सिद्धांत (Modern theory) ,
आधुनिक समय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति सम्बन्धी सर्वमान्य सिद्धांत बिग बैंग सिद्धांत (Big Bang Theory) है। इसे विस्तरित ब्रह्मांड परिकल्पना (Expanding Universe Hypothesis) भी कहा जाता है। 1920 ई॰ में एडविन हब्बल (Edwin Hubble) ने प्रमाण दिये कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है और समय बीतने के साथ आकाशगंगाएँ एक दूसरे से दूर हो रही हैं।
तारों का निर्माण (Construction of stars),
प्रारंभिक ब्रह्मांड में ऊर्जा व पदार्थ का वितरण समान नहीं था। घनत्व में आरंभिक भिन्नता से गुरुत्वाकर्षण बलों में भिन्नता आई, जिसके परिणामस्वरूप पदार्थ का एकत्रण हुआ। यही एकत्रण आकाशगंगाओं के विकास का आधार बना। एक आकाशगंगा असंख्य तारों का समूह है। आकाशगंगाओं का विस्तार इतना अधिक होता है कि उनकी दूरी हजारों प्रकाश वर्षों (Light Years) में मापी जाती है। एक आकाशगंगा का व्यास 80 हजार से 1 लाख 50 हजार प्रकाश वर्ष के बीच हो सकता है। एक आकाशगंगा के निर्माण की शुरूआत हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन से होती है जिसे नीहारिका (Nebula) कहा गया।
इस बढ़ती हुई नीहारिका (Nebula) में गैस के झुंड विकसित हुए। ये झुंड बढ़ते-बढ़ते घने गैसीय पिंड बने, जिनसे तारों का निर्माण आरंभ हुआ। तारों का निर्माण लगभग 5 से 6 अरब वर्षों पहले हुआ।
ग्रहों का निर्माण (Formation of planets),
आधुनिक समय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति सम्बन्धी सर्वमान्य सिद्धांत बिग बैंग सिद्धांत (Big Bang Theory) है। इसे विस्तरित ब्रह्मांड परिकल्पना (Expanding Universe Hypothesis) भी कहा जाता है। 1920 ई॰ में एडविन हब्बल (Edwin Hubble) ने प्रमाण दिये कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है और समय बीतने के साथ आकाशगंगाएँ एक दूसरे से दूर हो रही हैं।
तारों का निर्माण (Construction of stars),
प्रारंभिक ब्रह्मांड में ऊर्जा व पदार्थ का वितरण समान नहीं था। घनत्व में आरंभिक भिन्नता से गुरुत्वाकर्षण बलों में भिन्नता आई, जिसके परिणामस्वरूप पदार्थ का एकत्रण हुआ। यही एकत्रण आकाशगंगाओं के विकास का आधार बना। एक आकाशगंगा असंख्य तारों का समूह है। आकाशगंगाओं का विस्तार इतना अधिक होता है कि उनकी दूरी हजारों प्रकाश वर्षों (Light Years) में मापी जाती है। एक आकाशगंगा का व्यास 80 हजार से 1 लाख 50 हजार प्रकाश वर्ष के बीच हो सकता है। एक आकाशगंगा के निर्माण की शुरूआत हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन से होती है जिसे नीहारिका (Nebula) कहा गया।
इस बढ़ती हुई नीहारिका (Nebula) में गैस के झुंड विकसित हुए। ये झुंड बढ़ते-बढ़ते घने गैसीय पिंड बने, जिनसे तारों का निर्माण आरंभ हुआ। तारों का निर्माण लगभग 5 से 6 अरब वर्षों पहले हुआ।
ग्रहों का निर्माण (Formation of planets),
ग्रहों के विकास की निम्नलिखित अवस्थाएँ मानी जाती हैं –
तारे नीहारिका (Nebula) के अंदर गैस के गुंथित झुंड हैं। इन गुंथित झुंडों में गुरुत्वाकर्षण बल से गैसीय बादल में क्रोड का निर्माण हुआ और इस गैसीय क्रोड के चारों तरपफ गैस व धूलकणों की घूमती हुई तश्तरी (Rotating Disc) विकसित हुई।
अगली अवस्था में गैसीय बादल का संघनन आरंभ हुआ और क्रोड को ढकने वाला पदार्थ छोटे गोलों के रूप में विकसित हुआ। ये छोटे
गोले संसंजन (अणुओं में पारस्परिक आकर्षण) प्रक्रिया द्वारा ग्रहाणुओं (Planetesimals) में विकसित हुए। संघट्टन (Collision) की क्रिया द्वारा बड़े पिंड बनने शुरू हुए और गुरुत्वाकर्षण बल के परिणामस्वरूप ये आपस में जुड़ गए। छोटे पिंडों की अधिक संख्या ही ग्रहाणु है।
अंतिम अवस्था में इन अनेक छोटे ग्रहाणुओं के सहवर्धित होने पर कुछ बड़े पिंड ग्रहों के रूप में बने।
तारे नीहारिका (Nebula) के अंदर गैस के गुंथित झुंड हैं। इन गुंथित झुंडों में गुरुत्वाकर्षण बल से गैसीय बादल में क्रोड का निर्माण हुआ और इस गैसीय क्रोड के चारों तरपफ गैस व धूलकणों की घूमती हुई तश्तरी (Rotating Disc) विकसित हुई।
अगली अवस्था में गैसीय बादल का संघनन आरंभ हुआ और क्रोड को ढकने वाला पदार्थ छोटे गोलों के रूप में विकसित हुआ। ये छोटे
गोले संसंजन (अणुओं में पारस्परिक आकर्षण) प्रक्रिया द्वारा ग्रहाणुओं (Planetesimals) में विकसित हुए। संघट्टन (Collision) की क्रिया द्वारा बड़े पिंड बनने शुरू हुए और गुरुत्वाकर्षण बल के परिणामस्वरूप ये आपस में जुड़ गए। छोटे पिंडों की अधिक संख्या ही ग्रहाणु है।
अंतिम अवस्था में इन अनेक छोटे ग्रहाणुओं के सहवर्धित होने पर कुछ बड़े पिंड ग्रहों के रूप में बने।
सौरमंडल (Solar System),
हमारे सौरमंडल में आठ ग्रह हैं। नीहारिका (Nebula) को सौरमंडल का जनक माना जाता है उसके ध्वस्त होने व क्रोड के बनने की शुरूआत लगभग 5 – 5.6 अरब वर्षों पहले हुई व ग्रह लगभग 4.6 – 4.56 अरब वर्षों पहले बने। हमारे सौरमंडल में सूर्य (तारा), 8 ग्रह, 63 उपग्रह, लाखों छोटे पिंड जैसे – क्षुद्र ग्रह (ग्रहों के टुकड़े) (Asteroids) धूमकेतु (Comets) एवं वृहत् मात्रा में धूलकण व गैस है। इन आठ ग्रहों में बुध्, शुक्र, पृथ्वी व मंगल भीतरी ग्रह (Inner Planet) कहलाते हैं, क्योंकि ये सूर्य व छुद्रग्रहों की पट्टी के बीच स्थित हैं। अन्य चार ग्रह बाहरी ग्रह (Outer Planet) कहलाते हैं।
पार्थिव व जोवियन ग्रहों में अंतर,
पार्थिव ग्रह (Parthiv Planets) जनक तारे के बहुत समीप बनें जहाँ अत्यधिक तापमान के कारण गैसें संघनित नहीं हो पाईं और घनीभूत भी न हो सकीं। जोवियन ग्रहों (Jovian Planets) की रचना अपेक्षाकृत अधिक दूरी पर हुई।
सौर वायु सूर्य के नज़दीक ज्यादा शक्तिशाली थी। अतः पार्थिव ग्रहों (Parthiv Planets) से ज्यादा मात्रा में गैस व धूलकण उड़ा ले गई। सौर पवन इतनी शक्तिशाली न होने के कारण जोवियन ग्रहों (Jovian Planets) से गैसों को नहीं हटा पाई।
पार्थिव ग्रहों (Parthiv Planets) के छोटे होने से इनकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति भी कम रही जिसके परिणामस्वरूप इनसे निकली हुई गैस इन पर रुकी नहीं रह सकी।
समय सिर्फ आगे ही बढ़ेगा या उलटा भी घूमेगा?,
थॉमस किचिंग
यह लंबे समय से बहस का विषय है कि आखिर समय क्या है? इसकी उत्पत्ति कैसे हुई और समय आगे ही क्यों बढ़ता है? खगोलविद इस पर शोध करते रहे हैं, लेकिन यह सवाल अब भी अनुत्तरित है. इंगलैंड के एक संस्थान में एस्ट्रोफिजिक्स के व्याख्याता थॉमस किचिंग ने हाल ही में इस बारे में द कनजर्वेशन में एक आलेख लिखा है, जो पहले से चल रही बहसों को आगे बढ़ाता है. वह मानते हैं कि डार्क एनर्जी को समझने के बाद ही हम यूनिवर्स की नियति को समझ पायेंगे. पढ़िए यह ज्ञानप्रद और रोचक आलेख.
कल्पना कीजिए कि समय का चक्र उलटा घूमने लगा है. धीरे-धीरे लोग जवान हो रहे हैं. पढ़ा और सीखा गया भी दिमाग से निकल रहा है. कह सकते हैं कि ‘डीलर्निंग’ का प्रोसेस शुरू हो गया है. इसका अंत होगा जब हम फिर बच्चे बन कर अपने माता-पिता के गोद में होंगे.
समय कहां से शुरू हुआ,
समय का कोई भी सार्वभौमिक सिद्धांत, ब्रह्माण्ड के उत्पत्ति के सिद्धांत पर आधारित होगा. अगर आप ब्रह्माण्ड को
देखते हैं तब आप उन घटनाओं को भी देखते हैै, जो पहले घट चुके होते हैं, जिसे हमारे पास पहुंचने में बहुत कम समय लगेगा. अगर हम थोड़ा सा ध्यान दें तब ब्रह्मांड के समय को समझ सकते हैं.
उदाहरण के लिए, रात के समय आसमान में अंधेरा छाया रहता है. अगर ब्रह्माण्ड के पास असीम (इनफनाइट) अतीत है, तब रात में भी आकाश में उजाला होना चाहिए, यह उजाला ब्रह्मांड के असंख्य तारों से आना चाहिए.
लंबे समय तक वैज्ञानिक, जिसमें आइनस्टीन भी शामिल थे, का मानना था कि ब्रह्मांड स्थिर और अनंत है. हालांकि बाद के अध्ययन में यह बात सामने आयी कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है. इसका यह मतलब हुआ कि इसकी उत्पत्ति जब हुई होगी तब इसका
मनुष्य की पहुच जहाँ तक हैं इस ब्रह्माण्ड में,
ब्रह्मांड के जन्म के समय ही एक और रहस्यमई उर्जा का जन्म हुआ डार्क एनर्जी का एक काल्पनिक ऊर्जा शक्ति, अभी तक तो काल्पनिक ही कहिए। इस डार्क एनर्जी के कारण ब्रह्मांड बहुत ही तेज रफ्तार से फैलता जा रहा है। ज़रा सोचिए कितना बड़ा होगा ब्रह्मांड। इतने बड़े ब्रह्मांड में हम मनुष्य की पहुंच मात्र 93.2 अरब प्रकाश वर्ष तक ही है। जिसे Obsrvable Universe कहते हैं।इसके पार के ब्रह्मांड की हमें अभी तक कोई जानकारी नहीं है, वहां क्या है और कैसा है हमें नहीं पता है।
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति सनातन धर्म, हिन्दू धर्म /आधुनिक सिद्धांत समाप्त हो गया है कृपया आगे पढ़ें ब्रह्मांड पुराण
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