ब्रह्मांड की उत्पत्ति भाग 1, सनातन धर्म, हिन्दू धर्म /आधुनिक सिद्धांत, Sanatandharma-hindudharm

ब्रह्मांड की उत्पत्ति भाग- 1 सनातन धर्म, हिन्दू धर्म /आधुनिक सिद्धांत, Sanatandharma-hindudharm




नमस्कार मित्रों
मैं आपके लिए एक और शानदार जानकारी तो पढ़ना शुरू करे -

जानिए कैसे हुई इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति और कौन हैं सृष्टि (ब्रह्माण्ड) के रचयिता?,
जिस समय केवल अन्धकार ही अंधकार था; न सूर्य दिखाई देते थे न चन्द्रमा, अन्य ग्रहों और नक्षत्रों का भी पता नहीं था, न दिन होता था न रात। अग्नि, जल, पृथ्वी और वायु की भी सत्ता नहीं थी – उस समय केवल सदा शिव की ही सत्ता विधमान, जो अन्नादि और चिन्मय कही जाती थी उन्ही भगवान सदाशिव को वेद पुराण और उपनिषद तथा संत महात्मा ईश्वर तथा सर्वलोकमहेश्वर कहते हैं।
एक बार भगवान शिव के मन में सृष्टि रचने की इछा हुई। उन्होंने सोचा की में एक से अनेक हो जाऊं। यह विचार आते ही सबसे पहले परमेश्वर शिव ने अपनी परा शक्ति अम्बिका को प्रकट किया तथा उनसे कहा सृष्टि के लिए किसी दूसरे पुरुष का सृजन करना चाहिए , जिसके कंधे पर सृष्टि चलन का भार रखकर हम आनंदपूर्ण विचरण कर सकें।
ऐसा निस्चय करके शक्ति सहित परमेश्वर शिवा ने आपने वाम अण्ड  के १० वे भाग पर अमृत मल दिया। वंहा से तत्काल एक दिव्य पुरुष प्रकट हुआ। उसका सौन्दर्य अतुलनीय था। उसमे सत्गुर्ण सम्पन की प्रधानता थी। वह परम शांत और सागर की तरह गंभीर था। उसके चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और पध सुशोभित हो रहे थे।
उस दिव्य पुरुष ने भगवान शिव को प्रणाम करके कहा ‘भगवन मेरा नाम निश्चित कीजिये और काम बताइये ।’ उसकी बात सुनकर भगवान शिव शंकर ने मुस्कुराते हुए कहा ‘वत्स! वयापक होने के कारन तुम्हारा नाम विष्णु होगा। सृष्टि का पालन करना तुम्हारा काम होगा। इस समय तुम उत्तम तप करो’।
जानिए कैसे हुई इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति और कौन हैं सृष्टि (ब्रह्माण्ड) के रचयिता?,
तदन्तर सोये हुए नारायण की नाभि से एक उत्तम कमल प्रकट हुआ। उसी समय भगवान शिव ने आपने दाहिने अण्ड से चतुर्मुखः ब्रम्हा को प्रकट करके उस कमल पर बैठा दिया। महेश्वर की माया से मोहित हो जाने के कारण बहुत दिनों तक ब्रम्हा जी उस कमल की नाल में भ्रमण करते रहे।
किन्तु उन्हें अपने उत्पक्तिकर्ता का पता नहीं लगा। आकाशवाणी द्वारा तप का आदेश मिलने पर आपने जन्मदाता के दर्शनाथ बारहा वर्षों तक कठोर तपस्या की। तत्पश्चात उनके समुख विष्णु प्रकट हुए। श्री परमेश्वर शिव की लीला से उस समय वँहा श्री विष्णु और ब्रम्हा जी के बीच विवाद हो गया।
जानिए कैसे हुई इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति और कौन हैं सृष्टि (ब्रह्माण्ड) के रचयिता?,

वैज्ञानिक कार्ल सेगन का दावा….
कार्ल सेगन एक खगोल शास्त्री, खगोल भोतिकीविद, ब्रमांड वैज्ञानिक और एक लेखक थे, जो 1980 में बहुत प्रसिद्ध हुए। उनका एक टेलीविजन सीरियल कॉसमॉस: ए पर्सनल जर्नी यूएसए में सबसे अधिक देखे जाने वाला उस समय का टीवी प्रोग्राम था। जब 1996 में उनकी अचानक से मृत्यु हुई, उस समय कार्ल सेगन अमेरिका के मुख्य विज्ञान संचारक थे। नियमित मेहमान भी थे दोनों नाइटली न्यूज़ और “दी टू नाइट शो स्टारिंग: जॉनी कार्सन” केजब कार्ल सेगन को यह पूछा गया की ब्रम्हांड की रचना कैसे हुई? तो उन्होंने कहा कि इस बात का जवाब तो निश्चित तौर पर कोई भी नहीं दे सकता। कौन इस बात की घोषणा कर सकता है कि ब्रम्हांड उस वक्त और ऐसे बना? कब इसकी रचना हुई? हमारे लिए भगवान भी इस दुनिया की रचना के बाद ही आए हैं तो फिर कोई और कैसे जान सकता है की इस दुनियां की रचना कब हुई?

सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या कहाँ, किसने देखा था
उस पल तो अगम, अटल जल भी कहाँ था
ऋग्वेद(10:129) से सृष्टि सृजन की यह श्रुती

लगभग पांच हजार वर्ष पुरानी यह श्रुति आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी इसे रचित करते समय थी। सृष्टि की उत्पत्ति आज भी एक रहस्य है। सृष्टि के पहले क्या था ? इसकी रचना किसने, कब और क्यों की ? ऐसा क्या हुआ जिससे इस सृष्टि का निर्माण हुआ ?

अनेकों अनसुलझे प्रश्न है जिनका एक निश्चित उत्तर किसी के पास नहीं है। कुछ सिद्धांत है जो कुछ प्रश्नों का उत्तर देते है और कुछ नये प्रश्न खड़े करते है। सभी प्रश्नों के उत्तर देने वाला सिद्धांत अभी तक सामने नहीं आया है।

सबसे ज्यादा मान्यता प्राप्त सिद्धांत है महाविस्फोट सिद्धांत (The Bing Bang Theory)।


महाविस्फोट सिद्धांत(The Bing Bang Theory),
1929 में एडवीन हब्बल ने एक आश्चर्य जनक खोज की, उन्होने पाया की अंतरिक्ष में आप किसी भी दिशा में देखे आकाशगंगाये और अन्य आकाशीय पिंड तेजी से एक दूसरे से दूर हो रहे है। दूसरे शब्दों मे ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। इसका मतलब यह है कि इतिहास में ब्रह्मांड के सभी पदार्थ आज की तुलना में एक दूसरे से और भी पास रहे होंगे। और एक समय ऐसा रहा होगा जब सभी आकाशीय पिंड एक ही स्थान पर रहे होंगे, लेकिन क्या आप इस पर विश्वास करेंगे ?

तब से लेकर अब तक खगोल शास्त्रियों ने उन परिस्थितियों का विश्लेषण करने का प्रयास किया है कि कैसे ब्रह्मांडीय पदार्थ एक दूसरे से एकदम पास होने की स्थिती से एकदम दूर होते जा रहे है।

इतिहास में किसी समय , शायद 10 से 15 अरब साल पूर्व , ब्रह्मांड के सभी कण एक दूसरे से एकदम पास पास थे। वे इतने पास पास थे कि वे सभी एक ही जगह थे, एक ही बिंदु पर। सारा ब्रह्मांड एक बिन्दु की शक्ल में था। यह बिन्दु अत्यधिक घनत्व(infinite Density) का, अत्यंत छोटा बिन्दु(infinitesimally Small ) था। ब्रह्मांड का यह बिन्दु रूप अपने अत्यधिक घनत्व के कारण अत्यंत गर्म(infinitely Hot) रहा होगा। इस स्थिती में भौतिकी, गणित या विज्ञान का कोई भी नियम काम नहीं करता है। यह वह स्थिती है जब मनुष्य किसी भी प्रकार अनुमान या विश्लेषण करने में असमर्थ है। काल या समय भी इस स्थिती में रुक जाता है, दूसरे शब्दों में काल और समय के कोई मायने नहीं रहते है।*

इस स्थिती में किसी अज्ञात कारण से अचानक ब्रह्मांड का विस्तार होना शुरू हुआ। एक महा विस्फोट के साथ ब्रह्मांड का जन्म हुआ और ब्रह्मांड में पदार्थ ने एक दूसरे से दूर जाना शुरू कर दिया।

महा विस्फोट के 10-43 सेकंड के बाद,,

महा विस्फोट के 10-43 सेकंड के बाद, अत्यधिक ऊर्जा(फोटान कणों के रूप में) का ही अस्तित्व था। इसी समय क्वार्क , इलेक्ट्रान, एन्टी इलेक्ट्रान जैसे मूलभूत कणों का निर्माण हुआ।
10-34 सेकंड के पश्चात, क्वार्क और एन्टी क्वार्क जैसे कणो का मूलभूत कणों के अत्याधिक उर्जा के मध्य टकराव के कारण ज्यादा मात्रा मे निर्माण हुआ। इस समय कण और उनके प्रति-कण (१) दोनों का निर्माण हो रहा था , इसमें से कुछ एक कण और उनके प्रति-कण(2) दूसरे से टकरा कर खत्म भी हो रहे थे। इस समय ब्रम्हांड का आकार एक संतरे के आकार का था।
10-10 सेकंड के पश्चात, एन्टी क्वार्क क्वार्क से टकरा कर पूर्ण रूप से खत्म हो चुके थे, इस टकराव से फोटान का निर्माण हो रहा था। साथ में इसी समय प्रोटान और न्युट्रान का भी निर्माण हुआ।1 सेकंड के पश्चात, जब तापमान 10 अरब डिग्री सेल्सीयस था, ब्रह्मांड ने आकार लेना शुरू किया। उस समय ब्रह्मांड में ज्यादातर फोटान, इलेक्ट्रान , न्युट्रीनो (३) और उनके प्रती कणो के साथ मे कुछ मात्रा मे प्रोटान तथा न्युट्रान थे।
प्रोटान और न्युट्रान ने एक दूसरे के साथ मिल कर तत्वों(elements) का केन्द्र (nuclei) बनाना शुरू किया जिसे आज हम हाइड्रोजन, हीलीयम, लिथियम और ड्युटेरीयम के नाम से जानते है।

जब महा विस्फोट के बाद तीन मिनट बीत चुके थे,
जब महा विस्फोट के बाद तीन मिनट बीत चुके थे, तापमान गिरकर 1 अरब डिग्री सेल्सीयस हो चुका था, तत्व और ब्रह्मांडीय  विकिरण(cosmic Radiation) का निर्माण हो चुका था। यह विकिरण आज भी मौजूद है और इसे महसूस किया जा सकता है।
आगे बढ़ने पर 300,000वर्ष के पश्चात, विस्तार करता हुआ ब्रह्मांड अभी भी आज के ब्रह्मांड से मेल नहीं खाता था। तत्व और विकिरण एक दूसरे से अलग होना शुरू हो चुके थे। इसी समय इलेक्ट्रान , केन्द्रक के साथ में मिल कर परमाणु का निर्माण कर रहे थे। परमाणु मिलकर अणु बना रहे थे।
इस के 1 अरब वर्ष पश्चात, ब्रह्मांड का एक निश्चित सा आकार बनना शुरू हुआ था। इसी समय क्वासर, प्रोटोगैलेक्सी(आकाशगंगा का प्रारंभिक रूप), तारों का जन्म होने लगा था। तारे हायड्रोजन जलाकर भारी तत्वों का निर्माण कर रहे थे।
आज महा विस्फोट के लगभग 14 अरब साल पश्चात की स्थिती देखे ! तारों के साथ उनका सौर मंडल बन चुका है। परमाणु मिलकर कठिन अणु बना चुके है। जिसमे कुछ कठिन अणु जीवन( उदा: Amino Acid) के मूलभूत कण है। यही नहीं काफी सारे तारे मर कर श्याम विवर(black Hole) बन चुके है।
ब्रह्मांड का अभी भी विस्तार हो रहा है, और विस्तार की गति बढ़ती जा रही है। विस्तार होते हुये ब्रह्मांड की तुलना आप एक गुब्बारे से कर सकते है, जिस तरह गुब्बारे को फुलाने पर उसकी सतह पर स्थित बिन्दु एक दूसरे से दूर होते जाते है उसी तरह आकाशगंगाये एक दूसरे से दूर जा रही है। यह विस्तार कुछ इस तरह से हो रहा है जिसका कोई केन्द्र नहीं है, हर आकाश गंगा दूसरी आकाशगंगा से दूर जा रही है।


कृपया आगे ब्रह्मांड की उत्पत्ति भाग- 2 देखें http://www.sanatandharma-hindudharm.tk/2018/08/2.html



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